इतिहास

बजरंगगढ़ क़िला
गुना जिले का वर्तमान मुख्यालय गुना शहर में 5 नवंबर 1922 में स्थापित हुआ था। 19वीं सदी के पूर्व गुना ईसागढ (अब जिला अशोकनगर में स्थित) जिले का एक छोटा सा गाँव था। ईसागढ, जो कि 250-700 एवं 700-550 पूर्व में स्थित है, को सिंधिया के सेनापति जॉन वेरेस्टर फिलोर्स ने खींचीं राजाओं से जीता एवं प्रभु यीशू के सम्मान में इसका नाम ईसागढ रखा। सन् 1844 में गुना में ग्वालियर की फौज रहती थी, जिसके विद्रोह करने के कारण सन् 1850 में इसे अँग्रेजी फौज की छावनी में तब्दील किया गया। सन् 1922 में छावनी को गुना से ग्वालियर स्थानांतरित कर दिया गया एवं नवंबर 5, 1922 को जिला मुख्यालय बजरंगढ से गुना स्थानांतरित कर दिया गया। सन् 1937 में जिले का नाम ईसागढ के स्थान पर गुना को रखा गया तथा ईसागढ एवं बजरंगढ को तहसील बनाया गया जिन्हे बाद में क्रमश: अशोकनगर गुना तहसील के रूप में परिवर्तित किया गया।
सन् 1948 में राघौगढ को तहसील के रूप में शामिल किया गया। सन् 2003 में अशोकनगर को गुना से पृथक् कर एक अलग जिला बना दिया गया।
गुना रेलवे स्टेशन –
१८९९ बीना से राजस्थारन के बारां तक रेल लाइन का काम पुरा हुआ और रेल चलने लगीं। बाद में इसे कोटा तक बढांया गया। रेलवे अधिकारी बताते हैं कि तब तक अंग्रेजों की रेल कंपनी भी अस्तित्वे में नहीं आई थी। ज्याादातर रेल लाइन राजा-रजवाछडों द्वारा डलवाई जाती थी। यह लाइन ग्वांलियर की सिंधिया स्टेमट द्वारा डलवाई गई थी। करीब ११४ साल बाद अब यह लाइन डबल की जा रही है ।
तत्का लीन सिंधिया स्टे ट द्वारा ग्वावलियर-शिवपुरी नेरोगेज लाइन भी डलवाई गई थी, जिस पर छोटी रेल भी चला करती थी। बाद के वर्षेा में इसे हटा लिया गया। इसके अवशेष आज भी एबी रोड से सफर करने के दौरान देखे जा सकते हैं । यह दिलचस्पा संयोग है कि ९० के दशक में इसी नेरोगेज के समानांतर गुना-इटवा ब्रॉडगेज लाइन डालने का काम शुरू हुआ, जो तब के रेल मंत्री माधवराव सिंधिया का डीम प्रोजेक्ट था ।

रेलवे स्टेशन